अगर आप लंबी अवधि में अच्छे रिटर्न के साथ टैक्स सेविंग की प्लानिंग कर रहे हैं, तो बैंक FD और ELSS बेहतर विकल्प हो सकते हैं। लेकिन इन दोनों ही ऑप्शन में रिस्क और रिटर्न प्रोफाइल अलग-अलग हैं।

 FD में पहले से तय ब्याज मिलता है, जबिक ELSS से मिलने वाला रिटर्न बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है. ऐसी कई बातें हैं जो हमें टैक्स सेविंग की प्लानिंग के समय समझनी चाहिए।

टैक्स सेविंग FD में किए जाने वाले निवेश पर सेक्शन 80C के तहत 1.5 लाख रुपए तक की छूट मिलती है, लेकिन इस पर मिलने वाले ब्याज पर बैंक TDS काटते हैं। इस तरह की FD में 5 या 10 साल का लॉक-इन पीरियड होता है। फिलहाल टैक्स सेविंग FD पर 5-7 % का ब्याज मिल रहा है।

हालांकि यह अलग-अलग बैंकों पर निर्भर करता है. लॉक इन (Lock in period) को लेकर टैक्स सेविंग FD के नियम कड़े हैं। इसमें प्री-मैच्योर विड्रॉल का विकल्प मिलता ही नहीं है। भले ही आप एक साल के बाद इसमें पैसा जमा करने में असमर्थ हों लेकिन जो भी पैसा जमा होगा वो 5 या 10 साल बाद ही मिलेगा।

 इक्विटी लिंक्‍ड सेविंग्‍स स्‍कीम (ELSS) में लॉन्‍ग टर्म की जितनी भी टैक्‍स सेविंग स्‍कीम्‍स है, उनमें सबसे कम लॉक-इन पीरियड होता है। स्कीम में 3 साल का लॉक-इन होता है।

 यानी, 3 साल बाद आप स्‍कीम से बाहर निकल सकते हैं या फिर रिडीम करा सकते हैं. ELSS में निवेश करने पर सेक्शन 80C के तहत डिडक्शन का लाभ मिलता है। इस सेक्शन के तहत 1.5 लाख रुपए तक के निवेश पर डिडक्शन का लाभ मिलता है।

ELSS और बैंक FD में निवेश करके इनकम टैक्स बचाया जा सकता है। लेकिन टैक्स बचाने के लिए टैक्स सेविंग FD में बढ़ती महंगाई के बीच काफी कम रिटर्न मिलेगा। साथ ही FD पर मिलने वाले ब्याज पर TDS भी कटता है।

वहीं अगर ELSS की बात करें तो इसने बीते कुछ सालों में तगड़ा रिटर्न दिया है। इसमें निवेश करके भी आप टैक्स बचाने के साथ-साथ तगड़ी कमाई भी कर सकते हैं। क्योंकि ELSS का रिटर्न बाजार की चाल पर निर्भर करता है।